दूसरों को जज करना, उनके बारे में कोई राय बनाना, क्या गलत है या सही। आनंद, अपने पिता के साथ, ट्रेन में कहीं जा रहे था। उनके सामने की सीट पर, एक बुजुर्ग और उसका 24 साल का बेटा बेठा था। वो लड़का ट्रेन की खिड़की से बाहर देख कर चिल्लाया। "पिताजी, देखो पेड़ पीछे जा रहे हैं!" उसके पिताजी मुस्कुराए। लेकिन वहां बैठे एक युवा जोड़े ने इस 24 साल के बच्चे के व्यवहार को दया से देखा। अचानक वो फिर से चिल्लाया...."पिताजी, देखो बादल हमारे साथ चल रहे हैं!"
यह देखकर आनंद हंसने लगा और बोला- शायद ये लड़का पागल है। आनंद के पिता ने उसे डांटा, और कहा- तुम्हें किसी को जज नहीं करना चाहिए। इतने में ही, उस युवा जोड़े ने, उस बुजुर्ग को कहा- "आप अपने बेटे को किसी अच्छे डॉक्टर के पास क्यों नहीं ले जाते?" वो बुजुर्ग मुस्कुराया और बोला- मैंने ऐसा ही किया था और हम अभी अस्पताल से आ रहे हैं, मेरा बेटा जन्म से अंधा था, उसे आज ही आँखें मिली हैं।" इस कहानी का सार है कि सही मायने में, लोगों को, जानने से पहले उन्हें जज न करें।